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संसार और परमात्मा दो ऐसे शब्द हैं जो पूरक भी हैं और विरोधी भी प्रतीत होते हैं। संसार अर्थात् प्रकृति, जैसे - आकाश, हवा, पानी, सूर्य, तारे, पहाड़, समुद्र आदि - जिसे हम अपने चारों ओर देखते हैं, एक सार्वभौमिक पूर्वनिर्धारित तरीके से व्यवहार करते हैं। इस व्यवस्था के नियमों की खोज ही विज्ञान है।
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महाभारत के आदिपर्व में एकलव्य की कथा आती है। वह निषादों के राजा हिरण्यधनु के पुत्र थे । उस समय आचार्य द्रोण अस्त्र-शस्त्रों के श्रेष्ठतम आचार्य के रूप में विख्यात थे। एकलव्य ने द्रोण के पास आकर शिष्य बनने की प्रार्थना की परंतु द्रोण ने उसे शिष्य नहीं बनाया । एकलव्य निराश नहीं हुआ ।
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(इंद्रियों के माध्यम से मस्तिष्क में न घुसने दें जानकारियों का कचरा)
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सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक कलेक्टर साहब सिंघम स्टाइल में अवतरित होते हैं। उनके पीछे डण्डों और शस्त्रों से लैस पुलिस है। स्थान है एक मैरिज हॉल।
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मैं आज अश्रुपूरित नेत्रों से एक असाधारण शख्स का साधारण विदाई लेख लिख रहा हूँ। असाधारण इसलिए कि उसके जीवन में ईश्वर ने जितने संघर्ष दिये वह उतनी ही जीवटता से उनसे लड़ा । स्वयं अभावग्रस्त होते हुए भी दूसरों के लिए दिल खोल देता था
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जैसा कर्म होगा वैसा फल होगा। हमारी सामर्थ्य नहीं है कि हम कर्म के परिणाम या फल को बदल सकें परंतु हमारी सामर्थ्य है कि हम कर्म तथा उसके करने के तरीके को बदल सकें।
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सभ्यता के प्रारंभ से ही मनुष्य ने प्रकृति के रहस्यों को समझने के प्रयास किये और फिर जो भी अबूझ पहेलियॉं रह गईं उनके लिए संसार के अलग-अलग हिस्सों में निवास कर रहे समुदायों ने अपने-अपने तरीके से हल करने की कोशिश की। इसीलिए विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और पंथों का उदय हुआ।
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अनुयायियों की संख्या के आधार पर संसार के सबसे बड़े तीन धर्म ईसाई, इस्लाम और हिंदू हैं। इतिहास गवाह है कि सबसे ज्यादा रक्तपात धर्म के नाम पर हुआ है, चाहे वह धर्म-प्रचार के नाम पर हुआ हो या धर्म-सुधार के नाम पर ।
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शीर्षक पढ़कर कुछ अजीब सा लगा न ? हमें बचपन से ही सिखाया गया है कि जरूरत पड़ने पर देश के लिए मर-मिटना देश की सर्वोच्च सेवा है। सही भी है, परंतु व्यवहार में सभी के लिए न तो संभव है और न ही आवश्यक। देश पर संकट तब आता है जब देश कमजोर होता है।
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वैदिक या सनातन धर्म जिसे अब हिन्दू धर्म कहा जाता है के आधार स्तंभ चार वेद हैं । उपनिषद वेदों के आध्यात्मिक और दार्शनिक खंड हैं। इन्हीं उपनिषदों का सार मात्र 700 श्लोकों में गीता में समाहित कर दिया गया ।
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हम बचपन में एक खेल खेला करते थे । आठ-दस बच्चे एक गोल घेरे में खड़े हो जाते थे और एक बच्चा दूसरे के कान में एक वाक्य या शब्द कहा करता था । दूसरा बच्चा उसे तीसरे के कान में दोहराता था, तीसरा चौथे के और इस तरह क्रम आगे बढ़ता था । अंतिम बच्चा जो सुनता था उसे जोर से बोलता था ।
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2 अक्टूबर 20 के दैनिक भास्कर में संपादकीय पृष्ठ पर एक लेख छपा है । शीर्षक है – ‘’कोरोना ने हमें सिखाया कि अब 5 साल की योजनाऍं न बनाऍं’’ । इसके लेखक हैं सुनील अलघ जिनका परिचय दिया है बिजनेस और ब्रांड कंसल्टेंट ।