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सामान्य रूप से यह माना जाता है कि धर्म का आधार आस्था और विश्वास है।
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आपराधिक न्याय शास्त्र में मरणासन्न व्यक्ति की गवाही को बहुत महत्व दिया जाता है। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि मरता हुआ व्यक्ति झूठ नहीं बोलता।
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सूचना क्रांति के पहले भी अनेक क्रांतियॉं हुईं हैं । औद्योगिक क्रांति हुई जिसने जीवन को भौतिक रूप से सरल और सुखद बना दिया। वैचारिक रूप से पूँजीवाद भी क्रांति है, मार्क्स का साम्यवाद भी क्रांति है और समाजवाद भी क्रांति है।
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इस वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात् प्रतिपदा 1 अप्रैल को हुई। विक्रम संवत 2079 शुरू होने पर बधाइयों का तॉंता लग गया। वाट्ए एप और फेसबुक पर नववर्ष की धूम मच गई और अखबारों में एक कॉलम नए वर्ष पर अनिवार्यत: छापने की रस्म-अदायगी की गई।
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‘धर्म’ है क्या? यह हमेशा से विवाद का विषय रहा है। धर्म, संसार को समृद्धिशाली, नैतिक और सुखी बनाने के लिए था परंतु विडम्बना है कि उसका इस्तेमाल सदैव से चालाक लोगों के द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जाता रहा है।
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कितनी विचित्र बात है कि संसार में सबसे ज्यादा युद्ध धर्म के कारण हुए हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का सबसे ज्यादा विकास युद्धों के कारण हुआ। परंतु फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि विज्ञान का विकास धर्म के कारण हुआ है।
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सनातन का अर्थ है जो सदैव से है और सदैव रहेगा। जिसका न प्रारंभ है और न ही अंत है और जो सदैव नवीन बना रहता है। जब फारस की ओर से लोग भारत आए तो सिंधु नदी के इस पार रहनेवालों को उन्हों ने हिंदू कहना शुरू कर दिया और उनके धर्म को हिंदू धर्म कहने लगे । इसलिए भौगोलिक आधार पर नामकरण ‘हिंदू धर्म’ हो गया।
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जब स्वामी विवेकानन्द ने देखा कि हिन्दू धर्म भेदभाव और छुआछूत की कुरूतियों के कारण अपने मूल सिद्धांतों से भटक गया है तब व्यथित होकर उन्हें कहना पड़ा कि – ‘’हमारा धर्म हमारी रसोई तक सीमित होकर रह गया है।
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डॉ नरेंद्र दाभोलकर की पुण्यतिथि 20 अगस्त पर विशेष
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मनुष्य अपने अतीत का मोह नहीं छोड़ पाता । एक ओर वह अतीत के स्वर्णिम दिनों में डूबा रहना चाहता है तो दूसरी ओर अतीत से शिक्षा लेकर भविष्य को और अच्छा बनाना चाहता है। इसलिए अतीत को याद करने की जरूरत होती है और इसका उपाय है पुरानी चीजों को सहेज कर रखना । इसी से संग्रहालयों का जन्म हुआ।