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धर्म प्रश्न करने से शुरु होता है और बुद्धि-विवेक के प्रयोग द्वारा स्वयं उत्तर प्राप्त करने के बाद दृढ़ श्रद्धा-विश्वास पर समाप्त होता है। अधर्म उत्तर से शुरू होता है और अंधविश्वास पर समाप्त होता है।
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जनमानस में शिव सहज-सरल, भोलेभंडारी, संसारी-गृहस्थ हैं तो दूसरी ओर अनादि-अनन्त ब्रह्म हैं जो अपनी शक्ति के साथ मिलकर सृष्टि का सृजन, पालन और विसर्जन करते हैं। एक पौराणिक कथा कहती है कि शिवरात्रि पर जंगल में भटक गया भूखा-प्यासा बहेलिया रात में हिंसक पशुओं से बचने के लिए बेल के वृक्ष पर चढ़ गया ।
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भाषा बड़ी मजेदार चीज है। जीवित प्राणियों की तरह भाषा भी जन्म लेती है, विकास करती है, क्षय होती है और अंत में मृत हो जाती है। भाषाविद् बताते हैं कि विश्व में 573 भाषाएँ जड़-मूल से समाप्त हो चुकी हैं।
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सनातन धर्म का आधार वेद हैं। वेद के अनुसार इस सृष्टि का आधार एकमेव ब्रह्म है । ‘ब्रह्म’ और उसकी शक्ति ‘माया’ के द्वारा सृष्टि का उद्भव होता है। ब्रह्म चेतन है जबकि सृष्टि जड़ है।
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संसार कैसे, किससे मिलकर बना ? यह ऐसा रहस्य है जिसका उत्तर अध्यात्म व विज्ञान अपने-अपने तरीके से देते हैं। वेदांत कहता है कि मूल तत्त्वों की संख्या पाँच है जिनसे पूरा ब्रह्माण्ड से बना है।
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यदि शब्दकोश से ऐसे शब्द का चयन करने के लिए कहा जाए जो सर्वाधिक भ्रामक है तो नि:संदेह वह होगा – ‘धर्म’। धर्म शब्द का जितना उपयोग हुआ है उतना ही दुरुपयोग।
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किसी व्यक्ति या वस्तु के स्वभाव को उसका धर्म कहते हैं। सूर्य प्रकाश देता है, चंद्रमा शीतलता देता है, माँ अपने बच्चे से प्रेम करती है आदि। यह स्वभाव प्रयास करके नहींं बनाया गया। यह स्वमेव है। इसे बदला नहीं जा सकता। यही इनका धर्म है।
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आश्रम व्यवस्था जीवन जीने की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति है जो शरीर और मन को सामञ्जस्य में रखकर, जीव को संसार को विकसित करने में अपना योगदान देते हुए, संसार के अनुभवों से गुजारकर, उनकी निस्सारता से परिचय कराकर, मृत्यु का स्वागत करने के लिए तैयार कर देती है।
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मंडन मिश्र ने शास्त्रार्थ के दौरान आचार्य शंकर से कहा कि वैदिक धर्म का वास्तवित प्रचार तब होगा जब हवन और अग्निहोत्र से आकाश धूमिल हो जाएगा, वेदमंत्रों के स्वरों से दिशाएँ गुंजायमान हो उठेंगीं।
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जीवन का सबसे बड़ा रहस्य जीवन स्वयं है। अगले पल की भी खबर नहीं ।